सिर्फ एक एकताबद्ध राष्ट्रीय स्तर की मजदूर वर्ग का संघर्ष ही केन्द्रीय सरकार के हमले को रोक सकता है। ये तथाकथित हड़ताल से नहीं जो विश्वासघाति ट्रेड यूनियनों द्वारा ऊपर से ऐलान किया जा रहा है।

1. केन्द्रीय सरकार द्वारा मजदूर और मेहनतकश लोगों पर किये जा रहे हमलों के खिलाफ, ग्यारह केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा 2 सितम्बर 2015 के दिन एक अखिल भारतीय हड़ताल का ऐलान किया गया हैं। इन ग्यारह ट्रेड यूनियनों में सिर्फ सीटू, एटक, यूटीयूसी, आदि वाम केन्द्रीय यूनियनें ही शामिल नहीं हैं, बल्कि शासक वर्ग की पार्टियों से जुड़ी हुई इन्टेक एवं बी एम एस भी शामिल हैं। दूसरी ओर इन्हीं साझे मोर्चा में सी पी आई एम एल लिबरेशन से जुड़े ए आई सी सी टी यू भी शामिल है।

इन केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक बारह सूत्री मांग पत्र प्रस्तुत किया जिसमें त्वरित कदम के रूप में महंगाई, निजीकरण, नियमित कार्य में ठेकाकरण पर रोक लगाने, न्यूनतम वेतन 15000 रूपया करने आदि का मांग किया गया हैं। ये हड़ताल रेलवे, वीमा, प्रतिरक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष पूंजी विनिवेश (एफ डी आई ) एवं श्रम कानूनों में संशोधन के खिलाफ भी है।

2. इसमें कोई शक नहीं कि आर्थिक सुधार के नाम पे नरेन्द्र मोदि नेतृत्वाधीन वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने देश के मजदूर व मेहनतकश जनता की आजीविका पर तेज हमला शुरू किया हैं। पूंजीपतियों को अपने मर्जी के अनुसार मजदूरों को ’हायर एंड फायर’ अर्थात जब मर्जी रखना जब मर्जी निकालने की ज्यादा क्षमता देने के लिए श्रम कानूनों में परिवर्तन किया जा रहा हैं। अर्थ व्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों को और भी जोर-शोर से साम्राज्यवादी पूंजी एवं भारतीय बड़े बुर्जुआ के लूट के लिए फटा-फट खोल दिया जा रहा है। बचे-खुचे सरकारी संस्थानों को भारी छूट देकर देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथों बेचा जा रहा है, सामाजिक सुरक्षा मदों में होने वाले खर्च पर कटौती आदि हो रही है ।

3. ये हमला पिछले संसदीय चुनाव के समय से ही अपेक्षित था । ये साफ जाहिर हो गया था कि बड़े बुर्जुआ उनके विश्वस्त पात्र नरेन्द्र मोदी को सरकारी सत्ता की कमान दिलाने के लिए बहुत ही आतुर थे। हालांकि वर्तमान हमला वैश्वीकरण उदारीकरन के हमले का अभिन्न हिस्सा है, जो पिछले 25 वर्षों से चलती आ रही है, फिर भी क्रुरता के पैमाने पर पिछले समय की तुलना में ये ज्यादा क्रुर होते जा रहे हैं। भाजपा नेतृत्वाधीन केन्द्रीय सरकार ये हमला शुरू किया उन बड़े बुर्जुआ के हित में जो मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता पर सारे बोझ लादकर अपने संकट से निजात पाने की कोशिश कर रहे हैं। कोई संदेह नहीं कि इस तीब्र हमले के खिलाफ समुचित प्रतिवाद होना आवश्यक है। इसको रोकने के लिए जरूरी है मजदूर वर्ग के एक प्रतिरोधात्मक संघर्ष की।

4.हालांकि पिछले 25 वर्षों के अनुभव ये साफ दर्शाती हैं कि इन्हीं ट्रेड यूनियनों की राजनैतिक पार्टियां कई बार प्रदेश या केन्द्रीय सरकार की सत्ता में रहकर भारतीय बड़े बुर्जुआ एवं साम्राज्यवादी पूंजी के हित में वैश्वीकरण उदारीकरण की इन्हीं नीतियों को लागू करती आई हैं। इसके उपरान्त उस दौरान इन केन्द्रीय टेªड यूनियनों ने खासकर वाम ट्रेड यूनियनों ने अनगिनत एक दिवसीय अखिल भारतीय औद्योगिक हड़ताल आयोजित करती आई हैं। लेकिन फैक्ट्री स्तर पे पूंजीपतियों के हमलों के खिलाफ संघर्षों को आगे नहीं बढ़ाया बल्कि पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेश में जहां पर वे लम्बे अवधि तक सत्ता पर थी वहां वे सक्रिय रूप से फैक्ट्री मालिकों के हमले में साथ दिया और, मजदूरों को फैक्ट्री मालिक के हमले के सामने आत्म समर्पण करने के लिए मजबूर किया। इसमें कोई शक नहीं कि फैक्ट्री स्तर पर पूंजीपतियों के खिलाफ बिना लड़े समूचे पूंजीपति वर्ग और उनके नुमाइंदे तमाम सरकारों के खिलाफ एकताबद्ध राष्ट्रीय स्तर की संघर्ष का निर्माण कर पाना नामुमकिन है। लिहाज़ा फैक्ट्री स्तर के संघर्षें के साथ विश्वासघात करके एक अखिल भारतीय हड़ताल का ऐलान करना आंखो में धूल झोंकने के बराबर है। यह ऐसा नीति है जो उनके पूंजीपरस्त भूमिका को आड़ में रखकर मजदूरों को अपने प्रभाव में बनाए रखने के लिए किया जाता है।

5.वर्तमान स्थिति को देखते हुए अपने प्रभाव में रहने वाले मुट्ठीभर मजदूरों को हड़ताल तोड़ने वाले की भूमिका न लेने की सलाह देना एक अन्य बात है। लेकिन ये दिखाई दे रहा है कि आमतौर पर कम्युनिस्ट क्रांतिकारी ग्रुपों ने 2 सितम्बर के औद्योगिक हड़ताल को बिना शर्त समर्थन दिया है। संभवतः वे इस तरह महसूस कर रहे है कि तमाम सीमाओं के बावजूद ये हड़ताल सरकार के नीतियों के खिलाफ वाकई एक संघर्ष है जबकि इसके बिल्कुल उलट आमतौर पर मजदूरों में इस तरह के खोखले रूप से नियमित चले आ रहे हड़तालों को लेकर कोई उत्साह नहीं है। यह अनिवार्य है क्योंकि अपने कटु अनुभवों से मजदूर इन हड़तालों की निरर्थकता, एवं पुरानी पार्टियों एवं यूनियनों की साजिशों के बारे में समझ चुकी है। कम्युनिस्ट क्रांतिकारी ग्रुप ये समझने में बिफल रही हैं कि इन केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों का केन्द्र सरकार के नीतियों के खिलाफ, सच्ची प्रतिरोधात्मक संघर्ष को आगे बढ़ाने का न तो अभिप्राय है और न ही क्षमता है। बल्कि ऐसे हड़ताल द्वारा वो मजदूरों को बेवकूफ बनाकर अपने प्रभाव में रखना चाह रही है। कोई संदेह नहीं कि शासक वर्गों का ये हमलों का प्रतिरोध करने के लिए मेहनतकश जनता को साथ लेकर मजदूर वर्ग को एक सच्ची प्रतिरोधात्मक संघर्ष विकसित करना है। पुराने ट्रेड यूनियनों और पार्टियों के प्रभावों से मुक्त हुए बिना ऐसे संघर्ष का निर्माण संभव नहीं है। अगर इन हड़तालों को संघर्ष समझने की भूल की गई तो मजदूर इन ट्रेड यूनियनों एवं पार्टियों, खासतौर पर सुधारवादी संशोधनवादी पार्टियों एवं उनके यूनियनों के चंगुल से आजाद नहीं हो पायेगी। इससे आनेवाले समय के लिए सच्ची राष्ट्रीय एकताबद्ध संघर्ष की तैयारी भी बाधित होगी।

6.कोई संदेह नहीं सिर्फ राष्ट्रीय पैमाने पे एकताबद्ध मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता ही शासक वर्गों की तीब्र हमला का प्रतिरोध कर सकती है। पुरानी पार्टियों एवं यूनियनों के ऊपर से थोपे गए संघर्ष से नहीं। हालांकि हम एक ऐसे समय से गुजर रहे हैं जब हमारे देश में लम्बे समय से मजदूर वर्ग की अपनी कोई सच्ची पार्टी नहीं है। ऐसे एक पार्टी की उपस्थिति का मतलब होता अखिल भारतीय स्तर पे संघर्षरत मजदूरों की एक हद तक एकता होना । ऐसी पार्टी एकताबद्ध राष्ट्रीय स्तर की मजदूर वर्ग के संघर्ष को सचमुच मदद कर सकता है। ऐसी पार्टी की अनुपस्थिति में अलग-अलग पूंजीपतियों के खिलाफ फैक्ट्री स्तर की संघर्ष और संगठन का विकास हुए बिना राष्ट्रीय स्तर की प्रतिरोध संघर्ष का निर्माण संभव नहीं है जिस संघर्ष के जरिए मजदूरों ने अपने लम्बे समय की निष्क्रियता को पार कर बड़े पलटवार के लिए तैयार हो सके। मजदूरों को पुराने यूनियन, पुराने पार्टियों के चंगुल से निकालना है और अपने संगठन अपने संघर्ष का निर्माण करना है। ये प्रक्रिया शुरू हो चुका है लेकिन अभी भी काफी कमजोर है। जो कम्युनिस्ट सचमुच हमारी देश का मजदूर वर्ग के वर्ग संघर्ष को पुर्नजीवित करने के लिए काम करना चाहते हैं उनको इन फैक्ट्री स्तर की संघर्ष में शामिल मजदूरों को मदद करना चाहिए एवं साथ-साथ अखिल भारतीय स्तर पर इनमें से अगुवा मजदूरों को एकजुट होने के लिए भी मदद करना चाहिए। पुराने पार्टियों का इस तरह के तथाकथित संघर्षों में समर्थन देने से मजदूरों पर इन पार्टियों का प्रभाव, वो चाहे कितना भी कमजोर या खोखला क्यों न हो, बने रहने में मदद करेगा।

संपादक मण्डल

24 अगस्त 2015 फॉर ए प्रोलेटरियन पार्टी

(FOR A PROLETARIAN PARTY)

www.foraproletarianparty.in/fapp




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