पिछले 20-25 वर्षों के दौरान संसद के लिए हुए ज्यादातर आम चुनावों में कौन-कौन से मुख्य मुद्दे रहे हैं ? अगर आप याद करने की कोशिश करें तो आप पाएंगे कि मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार का रहा है । जब कांग्रेस सत्ता में थी, तो भाजपा भ्रष्टाचार के विरू़द्ध अत्यधिक मुखर थी । इसका उलट भी हमने देखा है । इसका अर्थ है कि चाहे जो भी पार्टी सत्ता में आए, सभी भ्रष्टाचार में लिप्त रही हैं । सभी विपक्षी पार्टी चिल्लपौं मचाती हैं कि वे भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देंगी । लेकिन सत्ता में आने के बाद, वही कहानी दोहराई जाती है और हम हताशा में आह भरते हैं - सारे खुश कुत्ते चोर हैं ।
क्या भ्रष्टाचार के इस मकड़जाल को तोड़ने का कोई उपाय नहीं है ? निश्चित रूप से, है । लेकिन उपाय ढूंढने से पहले, यह साफ तौर पर समझा जाना जरूरी है कि आखिर भ्रष्टाचार के इतने काण्ड क्यों हो रहे है, समाज की कौन सी व्यवस्था है जो इन सबको जन्म दे रही है ।
घोटाला कुल अंतग्र्रस्त सरकार वर्ष
धनराशि
(करोड़ रुपये)
1. बोफोर्स 400 कांग्रेस 1989
2. हवाला 6000 कांग्रेस 1992
3. केतन पारिख शेयर घोटाला 50000 भाजपा 2001
4. यूनिट ट्रस्ट घोटाला 25000 भाजपा 1998
5. बाल्को बिक्री घोटाला 5500 भाजपा 2003
6. सत्यम घोटाला 90000 कांग्रेस 208
7. राष्ट्रमंडल खेल घोटाला 80000 कांग्रेस 2010
8. 2जी स्पेक्ट्रम 176000 कांग्रेस 2010
9. कोयला घोटाला 186000 कांग्रेस 2012
पहले, आइए एक झलक देखें भ्रष्टाचार की उनकी प्रमुख घटनाओं पर जो प्रकाश में आई ।
भ्रष्टाचार और उद्योगपति:
आमतौर पर भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में ज्यादा शोर किसी मंत्री या अफसर को लेकर होता है और जो बात दबी छिपी रह जाती है वह यह है कि हरेक घोटाले के पीछे कोई एक या दूसरा औद्योगिक घराना होता है -जितना बड़ा घोटाला होता है उतना ही बड़ा और मशहूर होता है वह औद्योगिक घराना जो इसके पीछे होता है । जरा गौर फरमाइए:
बोफोर्स घोटाला: राजीव गांधी के शासनकाल में हथियारों के दलालों ने भारतीय राजनेताओं और उच्चाधिकारियों को रिश्वत दी ताकि वे स्वीडन की एक हथियार बनाने वाली फैक्टरी की हाॅविट्जर तोप खरीदें । इस गोपनीय सौदे में हिदुंजा ग्रुप के मालिकों और भारत के एक मशहूर हथियारों के दलाल के नाम शामिल थे ।
शेयर घोटाला: शेयर बाजार में बहुत बड़ी धेाखाधड़ी के मामलों में 1991 और 2001 में क्रमशः हर्षद मेहता और केतन पारिख के नाम सामने आए । दोनों ने शेयर बाजार में निवेश के लिए बैंकों से भारी भरकम धनराशि का दुरूपयोग किया था । इस घोटाले की गाज अंततोगत्वा बैंकों पर ही गिरी । सरकारी खजाने से इस नुकसान की भरपाई की गई ।
2जी स्पैक्ट्रम घोटाला: केन्द्र सरकार के दूरसंचार विभाग ने एक ही दिन में अपनी चहेती 122 मोबाईल कम्पनियों को एक खास वेवलैंथ के लिए लाईसेंस बेचे । और यह बिक्री सही दाम से लगभग 1 लाख 76000 करोड़ कम कीमत पर की गई । इस बिक्री से जिन कम्पनियों/उद्योगपतियों को फायदा पहुंचा वे थी अंबानी, टाटा, वीडियोकाॅन, एस्सार, यूनिटेक आदि ।
कोयला घोटाला: कोयला खनन के लिए विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी कम्पनियों को नीलामी के जरिए परमिट दिया जाता है । नीलामी की राशि और वास्तविक सही दाम के बीच का फर्क था एक लाख 86 हजार करोड़ रुपये । इससे जिंदल, टाटा, अदानी, भूषण, अंबानी आदि को फायदा हुआ । यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ऊपर जिन घोटालों की चर्चा की गई है वे सिर्फ कुछ बड़े घोटाले ही हैं । लगभग हर दिन ऐसे अनेक छोटे-बड़े घोटाले हो रहे हैं जिनमें अलग-अलग राज्यों में सत्ता में बैठी क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हैं ।
ऊपर उल्लिखित घटनाओं से कुछ स्पष्ट नतीजे निकाले जा सकते हैं । ये हैं:
1. सरकारों में बैठी तमाम पार्टियां भ्रष्ट हैं ,
2. भ्रष्टाचार के हरेक मामले में किसी न किसी बड़े औद्योगिक घराने का नाम शामिल है ,
3. भ्रष्टाचार के मामलों में अंतग्र्रस्त धनराशि 1990-91 के बाद से अत्यधिक बढ़ती जा रही है,
भ्रष्टाचार की दुनिया - उद्योगपति-सरकार-मंत्री-नौकरशाह का गठजोड़:
आपको याद होगा टेलीकाॅम घोटाले ;2जी स्पैक्ट्रम घोटाला के सम्बन्ध में नीरा राडिया का नाम उछला था । वह एक दलाल एजेंसी की मालकिन है । इस एजेंसी का काम था सरकारी विभागों पर अपने असर का इस्तेमाल कर ;रिश्वत के जरिए विभिन्न कारपोरेट या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आर्डर दिलवाना । राडिया की कम्पनी मुख्यतः टाटा और मुकेश अंबानी के एजेंट के तौर पर काम करती थी । उसकी कम्पनी वैष्णवी कम्युनिकेशंस की मालियत 9 साल में लगभग 300 करोड़ तक पहुंच गई । जरा अंदाजा लगाइये इस कंपनी द्वारा कराए गए सौदों की धनराशि कितनी रही होगी । आयकर विभाग ने नीरा राडिया के 14 टेलीफोन को टेप कराया । इन टेलीफोनों पर होने वाली कुछ ही वार्ताओं को रिकार्ड किया गया और उनमें से भी कुछ ही प्रकाशित हुई ।इन टेपों से पता चलता है कि टेलीकाॅम घोटाले में तत्कालीन मंत्री ए. राजा तो शामिल था ही, ढेर सारे दूसरे मंत्री, अफसर, टी. वी. चैनलों और अखबारों के रिपोर्टर भी देश के बड़े उद्योगपतियों के एजेंट के रूप में काम करते हैं । इन टेपों से यह भी पता चलता है कि कैसे नीरा राडिया और उस जैसे दूसरे लोगों ने विभिन्न लाॅबियों पर अपना प्रभाव डाला कि ए. राजा को मंत्री बनाया जाए क्योंकि इससे टाटा और अंबानी जैसे उसके ग्राहकों को फायदा मिल सकता था । इन टेपों से यह भी साफ तौर पर पता चलता है कि अलग-अलग मंत्रालय कैसे हासिल किए जा सकते हैं । एक टेप से पता चलता है कि डी एम के प्रमुख करूणानिधि की पत्नी को 600 करोड़ रुपये दिए गए ताकि दयानिधि मारन को मंत्री बनवाया जा सके । एक दूसरे टेप में सुनाई देता है कि तत्कालीन नगर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने जेट एयरलाईन के मालिक नरेश गोयल के एजेंट के तौर पर काम करते हुए सरकारी कम्पनी एयर इंडिया को भारी घाटा पहुचाया । और यह सब करा रहा था नीरा राडिया के जरिए टाटा गु्रप क्योंकि जेट एयरलाइन के अधिकांश शेयर उसी के पास है । टाटा समूह के तत्कालीन प्रमुख रतन टाटा और नीरा राडिया के बीच हुई एक बातचीत से जाहिर होता है कि ए. राजा को बचाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट के जज रघुपति पर दबाव बनाने की कोशिशें की गई थी । रिश्वत की तमाम घटनाओं में दो पक्ष होते हैं । कोई रिश्वत देता है और कोई दूसरा रिश्वत लेता है । रिश्वत देने वाला कभी सामने नहीं आता, वह परदे के पीछे से काम करता है । सामने वही आता है जो पैसों के लिए हाथ फैलाता है । जैसे इस मामले में रिश्वत देने वाले टाटा और अंबानी हैं लेकिन वे परदें के पीछे हैं । ए. राजा या प्रफुल्ल पटेल उनके एजेंट हैं । उद्योगपतियों की ओर से रिश्वत, आदि के जरिए काम कराने वाले कई संगठन हैं । इसलिए साफ है कि - उद्योगपतियों-नौकरशाहों ं-मंत्रियों-सरकार के बीच का यह ‘लेन-देन’ अत्यधिक व्यवस्थित तरीके से चलाया जाता है ।
आपको यह पूछने का हक है कि बेशक एक या दो उद्योगपति अनुचित तरीकों का सहारा लेकर सरकारी सौदे हासिल कर लेते हैं - लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि सारे उद्योगपति भ्रष्ट हैं ?
भ्रष्टाचार मुक्त कंपनियाँ - भूसे के ढेर में सुंई तलाश करना:
क्या भ्रष्टाचार कुछ लोगों के कुटिल कामों का नतीजा है ? अगर ऐसा है तो फिर इतने सारे बड़े-बड़े उद्योगपतियों के नाम तमाम घोटालों में शामिल क्यों हैं ? और ऐसा भी नहीं है कि यह कुछ भारतीय उद्योग समूहों की ही खासियत है । दुनिया भर के तमाम बड़े कारपोरेट घराने भ्रष्टाचार और घोटालों में शामिल हैं। ये सभी एक ही तरह से सरकारी सत्ता का इस्तेमाल करते हुए भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । हम सोचते हैं कि विकसित देशों में कड़े कानून हैं । लेकिन वहाँ भी भ्रष्टाचार है । दुनिया के बड़े उद्योग समूहों में से एक एनरॅान का मुख्यालय अमरीका में है । वहाँ इस कम्पनी ने अपनी परिसंपत्तियों का ब्यौरा दाखिल करते समय उसे कई गुना बढ़ा-चढ़ा कर बताया । ऐसा कर उन्होंने कम्पनी के शेयरों की बिक्री के जरिए जनता से करोड़ो डालरों की कमाई की । अमरीका की सीनेट हमारी संसद की तरह है । सीनेट के चुने हुए सदस्यों में से तीन-चैथाई का चुनाव प्रचार खर्च एनराॅन कम्पनी द्वारा वहन किया गया था । जनता को शेयर बेचकर भारी धनराशि जुटाने के बाद एनराॅन ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया । एनराॅन के शेयर खरदीने वाले लाखों लोग पूरी तरह बरबाद हो गए । जिस तरह से एनराॅन ने अपनी परिसंपत्तियों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था उसी तरह काम कर भारत में सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज के मालिक ने मोटी कमाई की । हालांकि अलग-अलग देशों में फर्क होता है फिर भी दुनिया भर में पूंजीपतियों और सरकारों के आपसी सम्बन्धें में कोई बुनियादी फर्क नहीं है । इसी तरह से जनता की सम्पत्ति को कुटिल तरीकों से हथिया कर अकूत धन संपदा का मालिक बनना एक ही तरह से होता है । इस संदर्भ में, पूंजीपतियों की ही सरपरस्ती में काम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ की एक टिप्पणी ध्यान देने योग्य है । इस संगठन की भारतीय शाखा का नाम है ‘ट्रांसपेरेंसी इंडिया’ । इस संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा - ‘‘भारत के निजी क्षेत्र को भ्रष्टाचार से कोई नुकसान नहीं है । इसके उलट वे खुद सरकारी अफसरों के साथ मिली भगत से भ्रष्टाचार के औजार के रूप में काम कर रहे हैं । भारतीय व्यापार के क्षेत्र में सरकारी अफसरों और निजी कंपनियों के बीच गुप-चुप सांठ-गांठ से भ्रष्टाचार हो रहा है ।’’ क्या इस पर टिप्पणी करने की कोई जरूरत है ?वैश्वीकरण-उदारीकरण और भ्रष्टाचार-चोर-चोर मौसेरे भाई:
हिन्दुस्तान लीवर के अध्यक्ष सुसिम मुकुल दत्ता एक वक्त पर एस्सोचेम के अध्यक्ष चुने गए थे । उनका नजरिया था कि ‘‘रिश्वत-भ्रष्टाचार और विकास में कोई संबंध नहीं है । भ्रष्टाचार बढ़ेगा और इसी तरह औद्योगिक विकास भी बढ़ेगा ।’’ इसका अर्थ हुआ कि भ्रष्टाचार को होने दीजिए इससे व्यापार या पूंजीपतियों के मुनाफे पर कोई खतरा नहीं आएगा ।जी हाँ, यह वक्तव्य शत प्रतिशत सही है । यह देखा जा सकता है कि जैसे-जैसे पूंजी के आकार में वृ़िद्ध हो रही है, देशी और विदेशी पूंजीपति अधिकाधिक पूंजी संग्रह कर रहे हैं, वैसे-वैसे ही भ्रष्टाचार का आकार भी फैलता जा रहा है । विशेष रुप से 1991 के बाद से घोटालों और रिश्वत के कारोबार में छलांगें लगा कर वृ़िद्ध हुई है ।
वर्ष 2002 में सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी बाल्को, जिसकी मालियत लगभग 6000 करोड़ रुपये थी, उसे स्टरलाईट समूह को सिर्फ 500 करोड़ रुपये में बेच दिया गया । यह औद्योगिक समूह तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के काफी निकट है । कांग्रेस से नजदीकी रखने वाले पूंजीपतियों को टेलीकाॅम घोटाले में अतिरिक्त फायदा मिला ।
अमरीका की दैत्याकार कंपनी वाल-मार्ट ने खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की मंजूरी वाले विधेयक को पास करवाने के लिए 300 करोड़ रुपये खर्च किए । और हमें यह कभी भी पता नहीं चलेगा कि यह पैसा किसकी जेब में गया ? अमरीकी गृहमंत्रालय की एक गोपनीय रिपोर्ट ;ीजजचरूध्ध्ू ू ूण् ी पद क नण्ब व उ ध्2011ध्13ध्17े जव तपम ेध्2011031758500100ण्ी जउ सद्ध 17 जुलाई 2008 को अमरीकी दूतावास से लीक हो गई (स्रोत: द हिंदू, 17 मार्च 2011) इस रिपोर्ट से पता चलता है कि अमरीकी सरकार ने तत्कालीन कांग्रेसी नेता सतीश शर्मा को 50-60 करोड़ रुपये दिए थे । इस रिपोर्ट के भेजे जाने के दिन से अगले ही दिन आणविक समझौते पर संसद में विश्वास मत लिया जाना था और यह सर्वविदित है कि इस समझौते से अमरीका के परमाणु रिएक्टरों के सौदागरों को फायदा हुआ है ।
चाहे सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाइयों को औने-पौने दामों पर बेचने की बात हो या खनिज पदार्थो पर कब्जा करने की बात हो या जमीन बिजली और कृषि उत्पाद हथियाने की, अकूत पैसा रिश्वत के तौर पर खर्च किया जा रहा है । देशी और विदेशी पूंजीपति अलग-अलग स्तरो पर सरकारों को प्रभावित करने, सरकारी अफसरों पर दबाव डालने, विधयकों-सांसदों पार्टी नेताओं को खरीदने और अदालती फैसलों को प्रभावित करने के लिए रात दिन पैसा बहा रहे हैं । इस तरह से हम देखते हैं कि वर्तमान समय में भ्रष्टाचार हर जगह फैल रहा है, घोटालों की संख्या बढ़ रही है और भ्रष्टाचार का आकार भी ।
क्या भ्रष्टाचार सिर्फ ऊपरी तबके की परिघटना है ?
नहीं, निश्चित तौर पर नहीं । अनुभव से हम जानते हैं कि अगर आपको सरकारी नौकरी चाहिए और आप रिश्वत नहीं देते हैं तो चाहे कितना भी भटक लीजिए, काम नहीं होगा -चाहे जन्म प्रमाण पत्र चाहिए या राशन कार्ड या 100 दिन का रोजगार, रिश्वत के बिना कुछ नहीं होगा । अगर आप इलाज के लिए डाॅक्टर के पास जाते हैं तो वह आपको बताएगा कि आपको जांच कहां करानी है । हर जगह कमीशन का ध्ंाध है । अदालत और पुलिस की तो ऐसी छवि है कि वहाँ की तो दीवारें भी रिश्वत मांगती हैं । यह बात तय है, कि चाहे सरकारी नौकरी के लिए निचले स्तर के अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा रिश्वत लेने की बात हो या आम आदमी की मजबूरी का फायदा उठाने की बात हो, इस सबको ऊपरी स्तर के भ्रष्टाचार से बढ़ावा मिलता है । ऊपरी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार एक संदेश देता है कि ‘अगर आपके पास ताकत है तो आप जी भर कर लूट सकते हो ।’ और इस संदेश का असर समाज के हरेक स्तर पर होता है ।पंूजी-संपदा की दीमक समाज को भीतर से खोखला बना रही है:
जब कभी लकड़ी में घुन लगता है तो काफी समय तक आप उसे देख नही पाते हैं, और जब यह घुन समूची लकड़ी को भीतर से खा जाता है तो उसे उखाड़ फैंकने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता है । समाज के मामले में पूंजी या जमीन या संपदा के मालिक घुन या दीमक जैसा काम करते हैं । वे करोड़ों मजदूरों और किसानों के शोषण से अपार धन सम्पदा कमाते हैं । लेकिन इतने से भी उन्हें चैन नहीं पड़ता है । उन्हें और ज्यादा मुनाफा चाहिए और यह मुनाफा उन्हें किसी भी तरीके से और किसी भी कीमत पर चाहिए । एक की जगह उन्हें पांच चाहिए और पांच की जगह पच्चीस और इस हवस का कहीं कोई अंत नहीं है । उनके लिए ईमानदारी या बेईमानी जैसी कोई चीज नहीं है । वे मजदूरों-किसानों की न्यायोचित कमाई और कानूनी लाभों को हड़पने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते हैं । इसके अलावा वे शॅार्टकट के लिए अपनी ताकत और प्रभाव का इस्तेमाल करते हैं । अपने माल की बिक्री को बढ़ाने के लिए वे सरकारी अफसरों और राजनेताओं को रिश्वत देेते हैं । आर्डर हासिल करने के लिए रिश्वत देते हैं । सड़क, पुल, फ्लाई-ओवर आदि के निर्माण के सरकारी ठेके लेने के लिए ये पूंजी के मालिक आपस में लड़ते हैं । ऐसे में रिश्वत स्वाभाविक है । जब सरकारी संपत्ति या फैक्टरी की ब्रिकी होती है तो एक दूसरे को धक्का देकर उसे हासिल करने के लिए ये पंूजीपति पैसा खर्च करते हैं । ऐसी स्थिति में कोयला घोटाला, टेलीकाॅम घोटाला या बाल्को घोटाला इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है । राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान सत्तारूढ़ नेताओं ने अपने चहेते ठेकेदारों को तमाम निर्माण कार्यों के ठेके दे दिए । कई बार आप देखते होंगे कि भूमि और भवन सम्बन्धी सौदों में जो भ्रष्टाचार होता है उसकी वजह होती है प्रोमोटरों और जमीन के दलालों का सरकार और राजनेताओं के साथ गठजोड़ । प्राकृतिक संसाधनों और सार्वजनिक सरकारी सम्पत्तियों को हथियाने के लिए वे तमाम तरह की तिकड़मों का सहारा लेते हैं । वे अपने प्रतिस्पर्द्धियों को धक्का देकर ऊपर उठने की कोशिश करते हैं । अगर हम इस तर्क को स्वीकार करते हैं कि ‘‘आखिर पूंजीपति मुनाफा तो कमाएगा ही’’, तो हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि फिर भ्रष्टाचार भी होगा ही । मुनाफे की अंधी हवस उन्हें भ्रष्टाचार में लिप्त होने के लिए मजबूर कर देती है । और इस मामले में अच्छे या बुरे पूंजीपति जैसा कोई श्रेणी विभाजन नहीं है ।हमें इस सच्चाई को कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूंजीपति भ्रष्टाचार के लिए जो भी राशि कमीशन या दलाली या रिश्वत के तौर पर खर्च करते हैं उसकी वसूली वे मजदूरों किसानों के शोषण से करते हैं । इस वजह से भ्रष्टाचार आप पर दोहरी मार करता है । एक ओर तो ये पूंजीपति सरकारी संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों पर काबिज हो जाते हैं और दूसरी ओर ऐसा करने के लिए सरकारी अफसरों और राजनेताओं को दी गई रिश्वत को वे मजदूरों किसानों और गरीबों के शोषण से वसूल कर लेते हैं । और इस वजह से हम इसे आंखें मूद कर स्वीकार नहीं कर सकते कि भ्रष्टाचार है और हम कुछ नहीं कर सकते और इसलिए हम मूक बने रहें ।
भ्रष्टाचार को मापने का पैमाना क्या हो ?
वर्तमान समाज जिस पैमाने पर भ्रष्टाचार को मापता है, क्या वह सही है ? आइए कोयला खदानों को निजी हाथों में सौंपने के मामले में हुए भ्रष्टाचार को लेते हैं । इस मामले में कहा जा रहा है कि जिस तरह से कोयला खदानों की नीलामी हुई वह गैर कानूनी था और यही भ्रष्टाचार था । इसके कारण चंद चहेते लोगों को ये कोयला खदानें मिल गई और सरकार को जितनी धनराशि मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली और इस राशि के एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपये होने का आकलन किया गया ।लेकिन देश की तमाम खदानों और सारे प्राकृतिक संसाधनों का स्वामी कौन है ? बेशक, जनता मालिक है । ऐसी स्थिति में लोगों को सिर्फ खनन करने और निकाले गए पदार्थ का उपभोग करने का अधिकार होना चाहिए । कोयला खदानों का निजीकरण और निजी मालिकों को इनकी लूट करने का अधिकार देना स्वयं में ही भ्रष्टाचार है । लेकिन मजेदार बात यह है कि कोयला खानों के निजीकरण सम्बन्धी विधेयक को सभी राजनीतिक दलों की सहमति से संसद द्वारा पारित कर दिया गया है । इसका मतलब हुआ कि कोयला, तांबा, लोहा, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैसे जैसे प्राकृतिक संसाधनों का मालिकाना निजी हाथों में देना अब कानूनी तौर पर वैध करार दे दिया गया है । सिर्फ नीलामी का तरीका या प्रक्रिया गैर कानूनी है और सिर्फ इतना ही भ्रष्ट काम है कि खदानें किस को मिलनी चाहिए थी और किस को मिली । क्या आप भ्रष्टाचार के इस पैमाने का मानने के लिए तैयार हैं ?
उदाहरण के तौर पर, विश्व बैंक जैसे साम्राज्यवादी संगठन का यह कहना हे कि इस देश में भ्रष्टाचार की मुख्य वजह है सरकारी प्रतिबंधेंा का होना । विभिन्न क्षेत्रों में लगे अलग-अलग तरह के सरकारी प्रतिबन्धेंा के कारण पूंजीपतियों का चीजों पर बगैर किसी रोक के नियंत्रण नहीं है और प्रतिबंध का मतलब है सरकारी मंजूरी । इस मंजूरी को हासिल करने के लिए सरकार के अलग-अलग स्तरों पर घूस देने की जरूरत पड़ती है और परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार होता है । उनका तर्क है कि अगर एक ऐसी व्यवस्था हो जिसमें कोई सरकारी नियंत्रण या प्रतिबंध न हो, तो फिर भ्रष्टाचार भी नहीं होगा । कितना हास्यास्पद तर्क है, है या नहीं ? आपको याद होगा कि जब आई पी एल क्रिकेट टूर्नामेंट में सट्टेबाजी की बातों को लेकर बहुत ज्यादा शोर-शराबा मच रहा था, तब एक मांग उठी थी कि अगर सट्टेबाजी को कानूनी तौर पर मंजूरी दे दी जाए, तो फिर इस तमाम शोर-शराबे की गुंजाईश खत्म हो जाएगी । इस तर्क का अर्थ है कि अगर आप भ्रष्टाचार की परिभाषा ही बदल दें, तो फिर भ्रष्टाचार ही नहीं रहेगा । भ्रष्टाचार को रोकना कितना आसान है ।
बहुत सारे लोग सोचते हैं कि अगर काले धन का वसूल किया जा सके, तो देश की जनता को बहुत फायदा होगा । काला धन आखिर काला क्यों है ? क्योंकि इस धन को विदेशों (स्विस बैंको) में रखा जाता है, करों की चोरी की जाती है और जमाराशि पर भी कोई कर नहीं लगता है । क्या सरकार को मालूम नहीं है कि कौन-कौन लोग हैं जिन्होंने यह पैसा विदेशों में जमा किया है ? बेशक सरकार को यह मालूम है । लेकिन फिर भी आखिर ऐसी क्या वजह है कि आजादी के इतने साल बाद भी इस जानकारी को जाहिर नहीं किया जा रहा है ? क्योंकि इस गैर कानूनी आमदनी के मालिक सरकार-प्रशासन-न्यायपालिका और उनके समर्थक धनासेठों ने इस विशेषाधिकार को अपने लिए सुरक्षित रखा है । और अब तो सरकार वैसे भी अमीरों पर लगे करों को घटाने वाली है । विदेशी बैंको में जमा काले धन की रकम 45 लाख करोड़ रुपये है ;अगर इस रकम को गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 45 करोड़ लोगों में बांटा जाए तो हरेक व्यक्ति को एक लाख रुपये मिल सकते हैं और 2005 से 2013 के बीच सरकार ने अमीरों के लिए अलग-अलग मदों में कुल 31 लाख 11 हजार करोड़ रुपये की राहत दी है । अब भाजपा ने घोषणा की है कि अगर वह सत्ता में आती है तो अमीरों पर लगने वाले आयकर को पूरी तरह खत्म कर देगी । बड़ी मजेदार बात है । फिर काले धन का तो नाम भी नहीं रहेगा ।
पूंजीवाद और राज्य सत्ता का गठजोड़ भ्रष्टाचार को जन्म देता है:
भ्रष्टाचार का स्रोत क्या है ? पहला स्रोत है निरंकुश शक्ति । जब कभी भी किसी एक व्यक्ति या समूह के पास किन्हीं लाभों या सुविधाओं को वितरित करने का एकाधिकार होता है तो वे ऐसे लाभों या सुविधओं को अपने संकीर्ण स्वार्थों के अनुसार वितरित करते हैं । अपवाद जनक मामलों में संभव है कि कोई ऐसा काम न करे । अधिकतर लोग जिनके पास ऐसी शक्तियाँ होती हैं वे मनमाने तरीके से ऐसी शक्तियों का इस्तेमाल अपने संकीर्ण स्वार्थो के अनुसार करते हैं । इसे अनिवार्य रूप में भ्रष्टाचार फैलता है । पूंजीवादी समाज में तमाम शक्तियाँ सरकार प्रशासन पुलिस मिलिट्री न्यायपालिका के हाथों में केन्द्रित हैं । हालांकि लोकतंत्र को जनता के लिए, जनता का, जनता द्वारा शासन कहा जाता है लेकिन ऐसा सिर्फ नाम के लिए ही होता है । शोषित जनता के पास उन्हें नियंत्रित करने की कोई शक्ति नहीं होती है । सत्ता के शिखर पर बैठे मुठ्ठी भर लोग समाज की संपदा का इस्तेमाल अपनी मर्जी से अपने संकीर्ण हितों के लिए करते हैं । भ्रष्टाचार का दूसरा स्रोत है उत्पादन के साधनों की निजी मिल्कियत । क्योंकि सिर्फ उत्पादन के साधनों का मालिक होने के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शोषण कर सकता है, एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण कर सकता है । जैसे पूंजीपति वर्ग मजदूर वर्ग का शोषण करता है । जब तक संपत्ति की निजी मिल्कियत की यह व्यवस्था कायम रहेगी, पूंजीपतियों जैसे संपत्तिशाली लोग अपनी संपत्ति को और अधिक बढ़ाना चाहेंगे, ऐसे करने के लिए उन्हें सरकार के अवसरों और विशेषाधिकारों की जरूरत पड़ेगी और ये अवसर और विशेषाधिकार उन्हें सरकार-नौकरशाह-मंत्री-पुलिस-मिलिट्री-न्यायपालिका ही दे सकती है और इन दोनों के आपसी लेन देन के रिश्तों से भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है । जब तक ये दोनों तबके रहेंगे, भ्रष्टाचार रहेगा । कोई भी कानून इसे खत्म नहीं कर पाएगा । भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए स्वयं पूंजीवाद को ही उखाड़ फैंकना होगा या ध्वस्त करना होगा ।
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